Thursday, August 30, 2007

इशारा कर दे



भक्ति और प्रेम (जिसे सामान्यत: लोग प्रेम कहते हैं)दो बिल्कुल अगल सी चीज लगती है ,
अपनी बुद्धि से सोचा जाये तो ये कहीं नहीं मिलते!वस्तुत: यह विषय हृदय के कार्यक्षेत्र में है!
वैसे भक्ति के बारे में यह भी कहा गया है कि-
वासना जब उपासना बन जाये तो उसे भक्ति कहते हैं
कभी जब आप रूमानी होकर किसी को याद करते हैं तो कुछ ऎसी ही अस्पष्ट
स्थिति होती है !लिखते वक़्त भी मुझे लगा की कहीं उस ईश्वरीय सत्ता को तो नहीं पुकार रहा हूँ?
भक्ति पथ कहता भी है कि हम इस संसार मे आकर भी भगवान को भुला नहीं पाते-सारे भौतिकवादी
ऐश्वर्य को पाने कि हमारी लालसा वस्तुत: उसी परम तत्व से साक्षात्कार की चरम इच्छा है !
हम यहाँ आकर उस सुख को भौतिक साधनों मे ढूंढते हैं!
जो भी हो ये हल्का आभास तो हमेशा होता है कि अभी मेरी पुकार शून्य मे उसी सत्ता को खोज रही है!





बशर-आदमी,इतिहास में बशर का जिक्र है
सदा-आवाज
शब-रात
सहर-सुबह
रक्से़-शरारा- बिज़ली का नृत्य

ishara kar de-prab...

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

आप की रचना अंतर्मन की यात्रा का शूभारंभ दर्शा रही है...हमारे भीतर उसी की जोत तो जल रही है...फिर उसे भूल कोई कैसे सकता है...जो मौजूद है हमी मे..बस हमारे मन के आवरण उसे ढक लेते हैं ।

Udan Tashtari said...

ठंडे बस्ते से गरमागरम लेखनी. अच्छा लगा पढ़कर.

Nishikant Tiwari said...

दिल की कलम से
नाम आसमान पर लिख देंगे कसम से
गिराएंगे मिलकर बिजलियाँ
लिख लेख कविता कहानियाँ
हिन्दी छा जाए ऐसे
दुनियावाले दबालें दाँतो तले उगलियाँ ।
NishikantWorld