Wednesday, August 1, 2007

कल रात







बस ये रात है और मैं हूँ ,कुछ हवाएं हैं -कुछ मेरे नफस हैं,कुछ चुप्पी सितारों में है -कुछ हम भी खामोश हैं ,बस अभी लिखी है और आपको प्रस्तुत कर रहा हूँ।



स़हर खामोश सरका था,शब भी गूंगी थी
सामने था ख्वाब, निगाहें उनपर टँगी थी



सोहबत में फ़रिश्तों के, गुज़रा था इक जहाँ
कुछ पल थे अभी गुज़रे,वो पल हैँ अब कहाँ

बनकर मेरी हमदम ,गुजरी थी वो सबा
कहाँ फैलाया निकहत को,मिलता नहीं निशां



उलझे थे मेरे अश्क़,साँसे भी उलझी थी
मेरे दिल में घर बनाकर,इक टीस उलझी थी



खुदा तुम क्यों बनाते हो टूटे हुए नगमें
शाखे-गुल पर काँटे,टूटे हुए सपने

तुम्हारा है ज़हाँ सारा,था मेरा भी आशियां
कबतक मैं समेटूँ ,ये बिखरे हुये तिनके



ठंढ़ी आग की बस्ती में,कल रोती शबनम थी
मेरे साथ में वो रोयी,वो मेरी हमदम थी

1 comment:

Yayaver said...

urdu par achhe pakad hai..
behtreen aagaz kavitaon ke duniya mein..