Tuesday, April 14, 2009

13 अप्रैल, शाम 8:00 बजे।


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13 अप्रैल, शाम 8:00 बजे।

कम्प्यूटर पर नज़र लगाए काफी समय हो गया है।मैं थोड़ा तनाव महसूस कर रहा हूँ।इस तरह के अल्पकालिक तनाव को दूर करने के लिए आप संगीत सुन सकते हैं,या बातें कर सकते हैं।

लेकिन मैं बाहर निकलना चाहता हूँ।मुझे बेहतर यही लगता है कि ऐसे समय में अपने आप को खुला छोड़ दूँ-

“अच्छा है दिल के पास रहे पासबाने-अक्ल……..लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे।”

मौज में ही खयाल आया कि लोगों को देखा जाये कि वे क्या कर रहे हैं।मैं अपने रूम(नं-78) के आठ रूम दाहिने गया और आठ रूम बायें।

हर सिंगल कमरे में दो-दो प्राणियों को रखा गया है। प्राणी इसलिये कह रहा हूँ कि मुझे इससे अच्छी संज्ञा नहीं मिल रही है। शब्द जैसे-छात्र,लड़के,विद्यार्थी मुझे व्यापक नहीं लग रहें हैं।कॉलेज में सीटें बढ़ीं हैं और हास्टल में कमरे तो उतने ही हैं।दुर्भाग्य से हम पहले तृतीय वर्ष के प्राणी हैं जो सिंगल कमरे में साथ साथ रह रहे हैं।

कमरा संख्या ७१-

यहाँ रहने वाले दो प्राणी हैं- हमारा क्लास रिप्रजेन्टेटिव आकाश और छह नंबर सौरभ।

आकाश अभी कमरे से गायब है-कहीं विदेश दौरे पर गया होगा,क्या करें इन्हें बहुत सारे काम सँभालने पड़ते हैं।पहले ये सूचना और संसाधन की होम डिलीवरी भी किया करते थे ,जो अब सूचना तक ही सीमित होकर रह गयी है।इनके शरीके रूम हैं सौरभ, जो कुमार सानू का कोई गाना सुन रहे हैं और साथ में पढ़ रहे हैं-आधे दीवार पर टिके हुये,आधे बेड पर।बिल्कुल आधा-आधा।पिछले ३ सालों से मैं इनका रौल नं० कन्फ़्यूज करता हूँ। चार और छह के बीच।वजह मुझे नहीं पता।

इनका कम्पय़ूटर स्क्रीन १९ इंच का है,जिसे ये कभी फुल रिजॉलुशन में नहीं रखते,जिससे वो १५ इंच का लगता है।इससे इन्हें तो कोई समस्या नही है,पर मेरा ध्यान अक्सर इस तरफ़ जाता है।

कमरा संख्या ७२-

प्राणी-सुनील पाल और मंदीप(the silent watcher)|

पाल गूगल टॉक पर लगा हुआ है।साथ में syllabus भी चल रहा है।मंदीप भी लैपटॉप खोले हुये है, पर मैं अन्दाजा नहीं लगा सकता कि वो क्या कर रहा है।

मैंने मंदीप को किसी का स्क्रीन निहारते हुये ही देखा है,तटस्थ भाव से।

मेरा शरीके-रूम काज़ी भी यहीं पड़ा है-मंदीप के बेड पर,सुप्तावस्था में।इन तीनों की खूब पटती है।कभी-कभी मैं इनके बीच में आने पर अपराध-बोध से ग्रस्त हो जाता हूँ कि इनकी तिकड़ी में खलल डाल रहा हूँ।मंदीप मेरे रूम में भी खूब पाया जाता है,इस कारण मैं इसे अपन तीसरा रूमी भी कहता हूँ। माया और राम(दुविधा में दोनों गये) के बीच पाल का संघर्ष जारी है।

कमरा संख्या ७३-

प्राणी-पुष्पेश शर्मा (पप्पु) और आदित्य विक्रम सिंह।

कमरे में लाइट नहीं जल रही,शायद सो रहे हैं।मुझे अफ़सोस है कि मैं तात्कालिक विवरण नहीं दे पा रहा हूँ।वैसे आदित्य तो यहीं बनारस के ही हैं।रूम मुख्यत: पुष्पेश जी का ही है।इनका कम्पू भी खुला रहता है और रॉक गाने बजा करते हैं।कभी-कभी हिंदी सॉफ्ट गाने सुनाई पड़ जाते हैं।इन्होंने क्लास में पिछली बेंच पर बैठने की कसम खा रखी है।

आदित्य विक्रम सिंह का नाम इतना भारी और रौबदार है कि लोगों के अन्तर्मन पर गहरा प्रभाव डालता है,अभी ही कोई इन्हें अनजाने में रुद्र प्रताप सिंह कह रहा था। इनकी हस्तलिपि मस्त है।

कमरा संख्या ७४-

प्राणी- रामलगन(रामू) और वैभव(pointer)|

रामलगन अभी गायब है,कोई कोचिंग गया होगा।यह सारा कोचिंग जाता है।मैं जैसे ही रूम में जाता हूँ तो देखता हूँ कि सिंगल रूम में २ बेड २ टेबल २ कुर्सी के बाद बचे थोड़ी सी जगह में वैभव टहल रहा है और लगातार टहल रहा है।

मुझे देखकर मुस्कुराया और बोला कि क्या हुआ?मैने कहा कि बस टाइम पास कर रहा हूँ।फिर उसने कहा कि आगे क्या सोचे हो? मैने कहा कि मैं नहीं सोचता।….कुछ तो सोचे होगे?……नहीं मैं कहाँ सोचता हूँ।

इस तरह मुझे इनकी तत्कालीन मानसिक उथल-पुथल का आभास हुआ।

कमरा संख्या ७५-

प्राणी- सौरभ(ठर्की) और निखिल(उपनाम जरा वीभत्स है)।

सौरभ रूम से गायब है।निखिल दोहरा काम करता हुआ पाया जाता है-कम्पू पर भी भिड़ा है और हाथ में किताब भी है,पैड के साथ।आजकल अपने तथा जनकल्याण के लिये नोट बना रहा है।

यह सारा वीडियो निपटाता है।मैंने कहा –लगे रहो।

कमरा संख्या ७६-

प्राणी- सूर्यकान्त और अक्षय(gmat)|

इनका रूम अंदर से बंद है और लाइट जल रही है।मैं इन्हें डिस्टर्ब नहीं करना चाह्ता। सूर्यकान्त के विविध रंग हैं-जो इनके विविध हरकतों और कपड़ों से झलकता है।आजकल ये योगा करते हैं और शंख भी बजाते हैं।अभी कुछ दिन पहले मैने इनकी कृपा से ज़िंदगी में पहली बार शंख बजाया।

अक्षय रस्तोगी अपने लक्ष्य में बिल्कुल क्लीयर इंसान हैं।ये शायद ही कभी लम्बे समय तक कोई कन्फ्यूजन रखते हैं।

कमरा संख्या ७७-

प्राणी-हेमंत और काली अनंत।

इनका रूम मुझे अजायबघर लगता है।मैं जब भी जाता हूँ तो बिखरी चीजों को देखने लगता हूँ।मुझे बाहर निकलने में काफी समय लगता है।इस बार जब मैं गया तो हेमंत भाई laptop पर ethics,valueस & philosophy के नोट्स पढ़ रहे हैं।काली अनंत लैब की फाइल बना रहा है।दोनों काम में भिड़े हुये हैं।मैं बाहर चला आता हूँ।

काली दक्षिण भारत से है और मेरे लिये इनकी उपयोगिता है अचार।मेस में मैं इनके अचार की प्रतीक्षा किया करता हूँ।हेमंत भाई दूसरों के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने में विश्वास रखते हैं कि इनका काम भी हो जाये और सीधे नाम भी नहीं आये।

कमरा संख्या ७९-

प्राणी- शिवम कौशिक(despo) और विशाल (bond)|

गज़ब का कॉम्बिनेशन।पहले तो लगता था कि ये साथ में रह पायेंगे या नहीं।पर ये एक साल पूरा करने वाले हैं।इन्हें देखकर मुझे विश्वास होता है कि दुनिया में रहकर भी माया-मोह से दूर रहा जा सकता है।दोनों अपनी धुन में,साथ साथ और बिना एक दूसरे से प्रभावित हुए रहते हैं।जैसी अपेक्षा थी, वैसे ही शिवम फाइल बनाते हुये मिले(फ़ाइल बेड पर और खुद नीचे बैठे हुये) और बाण्ड अपने कम्पू पर काउन्टर-स्ट्राइक उड़ाते हुये।

बान्ड ५०% असूर्यम्पश्य प्राणी है,मतलब कि दिन में लो एनर्जी स्टेट (सोते हुए…विद मूविंग आइज)में रहते हैं।क्लास में लेट हो रहे हों या फाइल पूरी ना हुई हो..पर डीजी चौराहे पर जाकर धुँआ उड़ाना जरूरी काम होता है।

कमरा संख्या ८०-

प्राणी-शोभित मिश्रा और अभिषेक(बोकारो)।

शोभित बरामदे में ही मिल गया।शिवम से जगत के नित्य-अनित्य पर चर्चा करने जा रहा है।कमरे में अँधेरा है,मतलब अभिषेक सो रहा है।

अभिषेक अपने आप को प्लानिंग करके चलाता है—इस समय ये कर लेगा …..फिर वो करेगा……फिर घर जायेगा।शोभित स्लो स्पीकिंग है,पेस में भी और इन्टेन्सिटी में भी।मुझसे कई दिनों से अपने लैपटॉप को ठीक करने को कह रहा है।शोभित क्लास में हर प्रोफ़ेसर का लेक्चर सुन लेता है।शोभित अभी अभी अपना निकनेम इस पोस्ट से सेंसर कर के गया है।

कमरा संख्या ८१-

प्राणी-गोविंद प्रताप चंद और आशीष।

ये सतयुग में रहते हैं।कमरा हमेशा खुला होता है, कोई अंदर हो या ना हो।मैंने कई बार कुत्तों को भी रूम में पनाह लेते देखा है।आशीष तो बाहर ही रहता है तो रूम गोविंद जी का ही है।ये अपने रूटीन को ठीक करने के लिये काफ़ी सज़ग हैं।आजकल सुबह उठने और धुँआ उड़ाना छोड़ने को लेकर प्रतिबद्ध हैं। अभी कमरे में अँधेरा है और कोई नहीं है।

आशीष आता भी है तो इधर-उधर रूम में रहता है और ग्रुप-स्टडी करता है,फाइल भी ग्रुप में मिलकर ही बनाता है।अकेले कैलकुलेशन करते देखकर भी बोलता है कि कोई हेल्प चाहिये तो बोलो।

कमरा संख्या ८२-

प्राणी- जितेन्द्र कुमावत(जिकु) और मनोज बंसल(गुरुदेव)।

जिकु लैपटॉप पर गेम में लगा हुआ है।

मनोज जी रूम से गायब हैं।कहीं टहल रहे होंगे, फोन पर ऑनलाइन होकर।जिकु मस्त आदमी है।मस्ती में ही सारे काम करता है।सीरियस मैटर भी मस्ती में ही सुलझाता है।इन्हें कभी कोई ज्यादा लोड नहीं है।इनमें गज़ब का आत्मविश्वास है।इनका एक बार कहना था कि ये इसलिये पीते हैं कि इन्हें पता है कि ये कभी भी ये सब छोड़ सकते हैं।

कमरा संख्या ८३-

प्राणी- मृदुल जोशी(मॉण्टु) और गौरव माथुर।

ओह!इनका कमरा भी बन्द है।सो रहे हैं।वैसे मॉण्टु गेम खेलते पाया जाता है या फिर सोते हुये।माथुर के बारे में मुझे लगता है कि उसने कोई काम अभी अभी करना शुरु किया है।

मॉण्टु बहुत ही मस्त आ्दमी है।इनसे २ मिनट बातें कर लो और कूल हो जाओ।माथुर नियंत्रित प्राणी है-इनके रूम में सब लोग मस्ती कर रहे हों फिर भी ये तटस्थ रह जायेंगे।

कमरा संख्या ८४-

प्राणी- विशाल(जाट) और ईशान(उपनाम केवल रामभवन जानता है)।

ये रूम ही मस्त है।ईशान तो घर पर ही रहता है

तो इस रूम के दोनों बेड आपस में जुड़े हुये हैं।इस रूम में काफी लोग जमा होते हैं।यहाँ बाजियाँ लगती हैं।गाने हमेशा बजा करते हैं।और विशाल पूरे कान्सन्ट्रेशन से पढ़ा करता है।जब यहाँ पत्ते उड़ते हैं तो अनायास ही मेरे मुँह से निकलता है- “डिकार्थी सुखिन: सुखार्थिम डिक:”।जिसका कोई मतल्ब नहीं है और व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं। पर इसका तात्पर्य है—डिक करने वाले सुखी होते हैं और जिन्हें सुख की कामना हैं वे डिक करें। (डिक करना-२८ या २९ खेलने में कलर देखने के लिये,ब्राड मीनिंग-पत्ते खेलना)।अभी का कोई विवरण नहीं है-यहाँ मुझे ताला लगा दिख रहा है।

कमरा संख्या ८५-

प्राणी- प्रशांत मोहन और वैभव(भैरो)।

कमरा संख्या ७५ का गायब सौरभ यहां पाया गया है।वैभव के साथ लैपी पर लगा हुआ है।

मुझसे आने का प्रयोजन पूछता है-मैं सारा विवरंण देता हूँ।बाहर बरामदे में एक टेबल पड़ा है, जिसपर प्रशांत मोहन बैठकर अध्ययनरत है।मुझे देखकर उसकी भी तन्द्रा टूटती है।मेरे विवरण सुनकर वो भी तरोताज़ा महसूस करता है।

कमरा संख्या ८६-

प्राणी-रामभवन और संतोष(senti)

यह कमरा भी बंद है।रामभवन मेस संचालक है और हर समय सबसे पैसे वसूल करते रहता है।यह ८५ किलो का है जबकि संतोष ५० किलो का।मुझे दोनो के कॉम्बिनेशन पर सुखद आश्चर्य होता है।

अभी अभी इनके कमरे में दीमक लगा था जो टेबल के ऊपर तक आ चुका था ,परंतु रामू ने जीव-मोह दिखलाते हुये उसे तब हटाया जब दीमक इनके बेडशीट को खाने लगा।ऐसा प्रेमभाव मुझे पौराणिक कथाओं में ही देखने को मिलता है। हे महर्षि आपको शत शत नमन।

कमरा संख्या ८७-

प्राणी-नवीन(पोबू) और इन्द्रजीत(एक विशेष तरह के बाबा)

यह आखिरी कमरा खुला है और दोनों प्राणी मौजूद हैं।नवीन लैपी पर चैटिंग में लगा है और इन्द्रजीत अपने बेड पर सूटकेस रखकर पढ़ रहा है। इनके पढ़ने का यही स्टाइल है।यह आदिकाल का सूटकेस है,इन्होंने इसी सूटकेस पर इसी तरह पढ़कर किसी काल में १० और १२ वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।इन्होंने भी मेरे आने का कारण जानना चाहा जो मैंने बता दिया।


इस तरह मेरा १० मिनट का रिफ़्रेशमेंट हो गया है।मैं फिर से तरोताज़ा महसूस कर रहा हूँ।