ये काफ़ी हल्के मूड में लिखी है। अपने नाम पर इस तरह लिखना और उसे आकाश के सूरज के साथ जोड़ना बड़बोलापन ही माना जायेगा।बस यूँ ही तुकबंदी कर दिया।(आप केवल हरे अक्षर को उपर से नीचे तक पढ़ें- प्रभाकर हूँ या कुछ और हूँ बता मुझको असलियत मेरी)। और क्या कहूँ,आपकी नज़रें जो भी ढ़ूँढ़ ले।
प्रभाकर सुलगता व्योम में
भावों में पावन होम में
कब से तुझे मैं खोजता
रचता तुझे मैं मोम में
हूँ इंतज़ार में पड़ा
यादों में तेरी मैं जड़ा
कुछ दिल है तेरा भी कड़ा
छल जा मुझे मैं हूँ खड़ा
और क्या फरियाद है
रहती तेरी ही याद है
हूँ बस इतनी फिक्र में
बनता तू कब सैय्याद है
तासीर तुझपर हो न हो
मुसीबतें बढती न हो
झकझोर दे आकर मुझे
कोई जुदा तन से ना हो
अब मुझे बरबाद कर
सब्र से आज़ाद कर
लिख चुका अपनी फितरत
यह सबक तू याद कर
तमन्ना मेरी सो जाये ना
मेरे नफस खो जाये ना
रीत निभा जा वफ़ा की
तस्सव्वुर से तू जाये ना
prabhakar.mp3 |