Sunday, May 6, 2007

प्रभाकर

ये काफ़ी हल्के मूड में लिखी है। अपने नाम पर इस तरह लिखना और उसे आकाश के सूरज के साथ जोड़ना बड़बोलापन ही माना जायेगा।बस यूँ ही तुकबंदी कर दिया।(आप केवल हरे अक्षर को उपर से नीचे तक पढ़ें- प्रभाकर हूँ या कुछ और हूँ बता मुझको असलियत मेरी)। और क्या कहूँ,आपकी नज़रें जो भी ढ़ूँढ़ ले।






प्र
भाकर
सुलगता व्योम में
भावों में पावन होम में
से तुझे मैं खोजता
चता तुझे मैं मोम में

हूँ इंतज़ार में पड़ा
यादों में तेरी मैं जड़ा
कु दिल है तेरा भी कड़ा
जा मुझे मैं हूँ खड़ा

क्या फरियाद है
हती तेरी ही याद है
हूँ बस इतनी फिक्र में
नता तू कब सैय्याद है

तासीर तुझपर हो न हो
मुसीबतें बढती न हो
कझोर दे आकर मुझे
को जुदा तन से ना हो

मुझे बरबाद कर
ब्र से आज़ाद कर
लि चुका अपनी फितरत
सबक तू याद कर

मन्ना मेरी सो जाये ना
मेरे नफस खो जाये ना
री निभा जा वफ़ा की
तस्सव्वुर से तू जाये ना

prabhakar.mp3

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