Sunday, May 6, 2007

अहसास

written in jan २००६
जनवरी की धूप और हम छत पर पढ़ने की कोशिश कर रहे होंमेरी चेतना किसी अनजाने सफ़र पर जा निकली होमखमली धूप और नरम हवाओं में किसी और के लिपटे रहने का आभास हो,तब ये ना लिखूँ तो क्या लिखूँ?



फ़नां हो जाऊँ सिमटकर
खुशनुमा लम्हों में
कबूल कर ले आँखों से
ये फरियाद मेरी

बेताबी ओढ़कर हर लम्हा
सुकूं तलाशता हूँ
कभी शिक़ायत करती होगी सबा
राज़दां मेरी

कसीदे-हाल है मेरा या
तू ही है मेरी मंज़िल
तेरे नक़्शे-कदम दिखलाती है
हर साँस मेरी

तू खुदा है शोला है या
शब की चाँदनी
सहरा की तू है प्यास या
बस अहसास मेरी

ahasas.mp3

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