गुज़र रही है ज़िंदगी लेकर साहिल की ओट, लहरों से फिर भी घबरा जाता हूँ ! कितना सोचता हूँ कि ये थपेड़े गुमनाम होकर रह जायें !
जब सैलाब में उतरा तो तेरा दर पाया
कितनी ख्वाहिशें छूटीं तो तू फिर याद आया
गुज़रे जो तेरी राह से हर साँस थी अटकी
देखा जो सहमे वक़्त मे बुलबुल भी ना चहकी
ख़्वाबों के सैर में मिली जब तेरी निशानी
लगती है मुझको हर नफस ज़िंदगी बेमानी
तू बचा मुझे कि हर पल पिघलता जा रह है
आफ़ताब सा हर नफस सुलगता जा रहा है
अरमां ये मेरे ,ये मेरे ख्वाहिशों के गर्द
सूनी राहों मे खोया सर्द-सर्द दर्द
dard.mp3 |
No comments:
Post a Comment