Thursday, May 3, 2007

दस्तक


ये मैंने क्लास के बीच मे ही लिखी थी अपने दोस्त मुश्ताक के लिए ,बेचारे की कहानी शुरू भी नहीं हो पायी !
अब बस यूँ ही खुश हो लिया करता है !






अज़ल की याद आती है , दस्तक पे तेरे
सिमट जाता हूँ अक्सर , ख़यालों मे तेरे

महफ़िल की बंदिशों मे तन्हा पड़ा हूँ
मिल जाओ कभी , मैं घुलता रहा हूँ

लफ्ज़ बेकल हैं ,लडखड़ाती है जबां मेरी
जाती होगी तुझतक , सदा मेरी

ओ सैय्याद तेरी सादगी पे मर मिटा हूँ
तोहफा है मेरे दिल का सहमा खड़ा हूँ

चैन मिले अब एक छुअन से तेरे
नज़दीकियों से, ख़्वाब से, सांसों से तेरे

आ जा कि पुकारता है हर पल "मुश्ताक़"
एक छोटे से लम्हे मे हो जाये ना जिगर चाक

dastak.mp3

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