Friday, April 27, 2007

तस्सवुर

कुछ शायरी सी लिखने की कोशिश कर रहा था। यहाँ छात्रावास का आँगन काफ़ी बड़ा है,मिट्टी पे मुलायम घास बिछी पड़ी है और गुलाब भी काफ़ी हैं। शब अपनी जवानी पर है और शबनम छिटका रही है।
इसी ओस में भीगा मैं कहीं खोया पड़ा हूँ।


कुछ इस तरह से ख्वाब में अटका हुआ हूँ मैं
इन सर्दियों मे ओस से भीगा हुआ हूँ मैं

रुत, हस्ती में अपनी शामिल है इस कदर
मेरे मिज़ाज़ से बदल जाये ये सहर

कुछ तेरी याद मे उलझा हुआ हूँ मैं
इक राहबर की फ़िक्र में डूबा हुआ हूँ मैं

गुज़रीं हैं अभी कुछ खुशनुमां रातें
ज़ख्मों को मेरे भर गयीं ये तबीब रातें

वक़्त की दीवार से टकरा रहा हूँ मैं
हस्ती को अपनी यूँ आज़मा रहा हूँ मैं

गिरदाब में सोया हुआ तन्हा-तन्हा दिल
रहनुमा-ए-इश्क़ का महफ़िल बना साहिल

फ़िर माहताब से रश्क़ खा रहा हूँ मैं
साये से अपनी दूर चला जा रहा हूँ मैं

tasawwur.mp3

2 comments:

Rahul Priyedarshi said...

Today I installed hindi font on my comp, ur poems are great man,keep them coming.

aarsee said...

thank you