तमन्ना!जाने कितनी सारी हैं,कुछ पूरी होतीं हैं और कुछ खार बनकर चुभती रहती हैं।
(जगजीत सिंह की एक गज़ल जो अक्सर गूंजती रहती है -तमन्ना फ़िर मचल जाये अगर तुम मिलने आ जाओ)
पर मुझे किससे मिलना है-किसी से नहीं,फ़िर भी बेताबियाँ तो हैं ही।
और जब कुछ ख्वाहिशें पूरी ना हो-ख्वाहिशें जो केवल आनंदधर्मिता के लिये न हो,
सितमगर बने कितना भी जहाँ
तेरे सितम से कब हो मुकाबिल
ज़ुल्मत में भी हो तेरा दीदार
हमारी हर खुशी के तुम हो कातिल
फ़ानी जहाँ में आए हम क्यों
हमारी हसरतों का क्या है हासिल
उम्र गुजरी खूने-तमन्ना में
हुआ हूँ मैं या तुम हो कातिल
कहाँ हम ढूँढें दिल पुरआरज़ू को
बना है आशियां सहरा-ओ-साहिल
फ़कत कुछ साँस खार में चुभी है
मेरे अरमानों के तुम हो कातिल
ज़ुल्मत -अँधेरा
फ़ानी जहाँ -नश्वर संसार
खूने-तमन्ना - इच्छाओं का दमन
दिल पुरआरजू -इच्छाओं से भरा ह्रदय
सहरा-ओ-साहिल - वीराना और किनारा
खार - काँटा
tamanna commentary... |
1 comment:
बहुत बढिया प्रस्तुति है।
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