एक शायरी पढी थी-
जैसे बिजली के चमकने से किसी की सुध जाए
बेखुदी आयी अचानक तेरे आने से
खैर यहाँ तो ये स्पष्ट है कि बेखुदी क्यों आयी,पर ऐसे हालत में क्या हो जब कारण नहीं दिख रहा हो?मन कुच सोच कर चंचल हो उठता है।कुछ भी कहने लगता है,सुरूर सा चढ आता है।
हर पत्ते,हर साँस में नशा सा छा जाता है।कुछ दिखता नहीं,कुछ सुनाई नहीं देता।
पर,कहीं से अस्पष्ट सी आवाज़ आती रहती है-मन गाता रहता है।
दीदार से महरुम हूँ ,कुछ आता नहीं नज़र
ये सियाह-रात ज़ुल्फ़ों से बिखराया किसने
कुछ जम गया है सीने में चलता नहीं नफ़स
सबा में जामे-तबस्सुम फैलाया किसने
रुक-रुक के घिर आती है यह कैसी बेखुदी
नन्हें चाँद को अर्श पर बिठलाया किसने
तसव्वुर में आने लगी है सदा-ए-बुलबुल
कौन सैय्याद है ये जाल बिछाया किसने
सियाह-रात - काली रात
नफस -साँस
अर्श-आसमान
तसव्वुर -कल्पना ,ख्वाब
सदा-ए-बुलबुल -बुलबुल की आवाज़
सैय्याद-शिकारी
1 comment:
बहुत बढिया!
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