क्या बताऊँ,कैसे कहूँ,बस तेरा दीदार करता रहा और कुछ सोचता रहा!
वक़्त थमकर मुझे देखता रहा और मुस्कुराता रहा
कभी बेचैनी कभी ख़ुशी कभी तैरती मुस्कराहट कभी बिखरती खुशबू
और उसपर कभी चंचल कभी थमी हुई मेरी नज़र
माना कि ये एक दूसरी दुनिया है पर कुछ देर मैंने इस जहाँ कि भी सैर कर ली
कुछ छुपाना नहीं चाहता इसीलिये जो भी भाव आते गए उसे कागज़ पर उतारता रहा
सब एक साँस में लिखी गयी है और पुन: संपादन नहीं किया गया है!
तो आप भी कुछ पल इस सैर में हमसफ़र हो लें-
ये मेरी नज़र भी परीशां बहुत है
ये मेरी नज़र भी परीशां बहुत है
ऐ आँचल ढलककर ना छेड उनको
ऐ शाने तू ज़ुल्फ़ों से खेला ना कर
वो रुखसार पर चमके पसीने
वो परी-रु परीशां बहुत है
ये मेरी नज़र भी परीशां बहुत है
पीते हैं आँखों से साकी की आँखें
ये सोयी सी आँखें परीशां बहुत है
भेजा है किसने बनाकर ये शोला
जल-जल के हम परीशां बहुत हैं
ये मेरी नज़र भी परीशां बहुत है
किस अदा से है बिखरी लबों पे हँसी
कुछ निकले तरन्नुम बढी मयकशी
इस बिखरे शबाब को निगाहों से चुनना
ये दिल अब हमारा परीशां बहुत है
ये मेरी नज़र भी परीशां बहुत है
क्या कह दूँ तुझे ऐ आगाज़े-कयामत
बहुत बेखबर हो बताऊँ क्या हालत
खोयी हैं नींदें न खुद का है होश
फ़लक पे सितारे सुहाने बहुत हैं
ये मेरी नज़र भी परीशां बहुत है
1 comment:
आप की रचना बहुत अच्छी रवानगी है।बहुत बढिया रचना है।
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