भक्ति और प्रेम (जिसे सामान्यत: लोग प्रेम कहते हैं)दो बिल्कुल अगल सी चीज लगती है ,
वासना जब उपासना बन जाये तो उसे भक्ति कहते हैं

सहर-सुबह
रक्से़-शरारा- बिज़ली का नृत्य
ishara kar de-prab... |
ishara kar de-prab... |
क्या बताऊँ,कैसे कहूँ,बस तेरा दीदार करता रहा और कुछ सोचता रहा!
वक़्त थमकर मुझे देखता रहा और मुस्कुराता रहा
कभी बेचैनी कभी ख़ुशी कभी तैरती मुस्कराहट कभी बिखरती खुशबू
और उसपर कभी चंचल कभी थमी हुई मेरी नज़र
माना कि ये एक दूसरी दुनिया है पर कुछ देर मैंने इस जहाँ कि भी सैर कर ली
कुछ छुपाना नहीं चाहता इसीलिये जो भी भाव आते गए उसे कागज़ पर उतारता रहा
सब एक साँस में लिखी गयी है और पुन: संपादन नहीं किया गया है!
तो आप भी कुछ पल इस सैर में हमसफ़र हो लें-
ये मेरी नज़र भी परीशां बहुत है
ये मेरी नज़र भी परीशां बहुत है
ऐ आँचल ढलककर ना छेड उनको
ऐ शाने तू ज़ुल्फ़ों से खेला ना कर
वो रुखसार पर चमके पसीने
वो परी-रु परीशां बहुत है
ये मेरी नज़र भी परीशां बहुत है
पीते हैं आँखों से साकी की आँखें
ये सोयी सी आँखें परीशां बहुत है
भेजा है किसने बनाकर ये शोला
जल-जल के हम परीशां बहुत हैं
ये मेरी नज़र भी परीशां बहुत है
किस अदा से है बिखरी लबों पे हँसी
कुछ निकले तरन्नुम बढी मयकशी
इस बिखरे शबाब को निगाहों से चुनना
ये दिल अब हमारा परीशां बहुत है
ये मेरी नज़र भी परीशां बहुत है
क्या कह दूँ तुझे ऐ आगाज़े-कयामत
बहुत बेखबर हो बताऊँ क्या हालत
खोयी हैं नींदें न खुद का है होश
फ़लक पे सितारे सुहाने बहुत हैं
ये मेरी नज़र भी परीशां बहुत है
तमन्ना!जाने कितनी सारी हैं,कुछ पूरी होतीं हैं और कुछ खार बनकर चुभती रहती हैं।
(जगजीत सिंह की एक गज़ल जो अक्सर गूंजती रहती है -तमन्ना फ़िर मचल जाये अगर तुम मिलने आ जाओ)
पर मुझे किससे मिलना है-किसी से नहीं,फ़िर भी बेताबियाँ तो हैं ही।
और जब कुछ ख्वाहिशें पूरी ना हो-ख्वाहिशें जो केवल आनंदधर्मिता के लिये न हो,
सितमगर बने कितना भी जहाँ
तेरे सितम से कब हो मुकाबिल
ज़ुल्मत में भी हो तेरा दीदार
हमारी हर खुशी के तुम हो कातिल
फ़ानी जहाँ में आए हम क्यों
हमारी हसरतों का क्या है हासिल
उम्र गुजरी खूने-तमन्ना में
हुआ हूँ मैं या तुम हो कातिल
कहाँ हम ढूँढें दिल पुरआरज़ू को
बना है आशियां सहरा-ओ-साहिल
फ़कत कुछ साँस खार में चुभी है
मेरे अरमानों के तुम हो कातिल
ज़ुल्मत -अँधेरा
फ़ानी जहाँ -नश्वर संसार
खूने-तमन्ना - इच्छाओं का दमन
दिल पुरआरजू -इच्छाओं से भरा ह्रदय
सहरा-ओ-साहिल - वीराना और किनारा
खार - काँटा
tamanna commentary... |
एक शायरी पढी थी-
जैसे बिजली के चमकने से किसी की सुध जाए
बेखुदी आयी अचानक तेरे आने से
खैर यहाँ तो ये स्पष्ट है कि बेखुदी क्यों आयी,पर ऐसे हालत में क्या हो जब कारण नहीं दिख रहा हो?मन कुच सोच कर चंचल हो उठता है।कुछ भी कहने लगता है,सुरूर सा चढ आता है।
हर पत्ते,हर साँस में नशा सा छा जाता है।कुछ दिखता नहीं,कुछ सुनाई नहीं देता।
पर,कहीं से अस्पष्ट सी आवाज़ आती रहती है-मन गाता रहता है।
दीदार से महरुम हूँ ,कुछ आता नहीं नज़र
ये सियाह-रात ज़ुल्फ़ों से बिखराया किसने
कुछ जम गया है सीने में चलता नहीं नफ़स
सबा में जामे-तबस्सुम फैलाया किसने
रुक-रुक के घिर आती है यह कैसी बेखुदी
नन्हें चाँद को अर्श पर बिठलाया किसने
तसव्वुर में आने लगी है सदा-ए-बुलबुल
कौन सैय्याद है ये जाल बिछाया किसने
सियाह-रात - काली रात
नफस -साँस
अर्श-आसमान
तसव्वुर -कल्पना ,ख्वाब
सदा-ए-बुलबुल -बुलबुल की आवाज़
सैय्याद-शिकारी
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bachapan 2.mp3 |
tum kaun.mp3 |
बस ये रात है और मैं हूँ ,कुछ हवाएं हैं -कुछ मेरे नफस हैं,कुछ चुप्पी सितारों में है -कुछ हम भी खामोश हैं ,बस अभी लिखी है और आपको प्रस्तुत कर रहा हूँ।