Wednesday, October 31, 2007

जहाँ दिल को हो सुकूं..वो ठिकाना ना मिला (नज़्म)

जहाँ दिल को हो सुकूं..वो ठिकाना ना मिला
यादों से मुझे कभी...छुटकारा ना मिला
अब्र बरसा था अभी आँगन में मेरे
आतिश से भरे दिल को...सहारा ना मिला

हमारे रुबरू होकर कभी गया था वो
ता हश्र फिर कभी वो..शरारा ना मिला
क्या शिकवा करें तुझसे ऐ जिंदगी,पर
ऐसा कोई जिंदगी का मारा ना मिला

दिल जलना और खूं होना ही शोब नहीं
कुछ सवाल हैं जिनका..इशारा ना मिला
अज़ल ले जायेगी नयी डगर..तो देखते हैं
पर क्या पता गर वहाँ भी..गुजारा ना मिला

4 comments:

abhiroyal said...

gr8 work by prabhakar bhai.....

Udan Tashtari said...

बढ़िया है, प्रभाकर जी.

दीपक भारतदीप said...

आपकी कविताएं बहुत अच्छी और भावपूर्ण हैं।
दीपक भारतदीप

Anonymous said...

Dear Prabhakar bhai

Very good.

Suresh Pandit, jaipur
Email: biharssangathan@yahoo.com