Friday, November 2, 2007

अब तो जाने दे(नज़्म)

बेचैन सबा संग फिरता था
कहता था बुरा क्या होगा
तेरे कूचा-ए-कफ़स में अटके
ऐ सितमगर अब तो जाने दे

तेरी सूरत देखकर क्या जाने
हैं खार बिछे तेरे दर पर
सहलाया जो ज़ख्मे-पां को
कहा कि अब तो जाने दे

हाल बयां क्या हो तुझपर
जब भी थोड़ी हिम्मत बाँधी
आँखों ने कुछ कहा दिल से
सोचा कि अब तो जाने दे

होती है खता जब हमसे
रंग बदल वो लेते हैं
पर जब उनकी बारी आयी
फरमाया कि अब तो जाने दे

कोई अदा जरा उनकी देखे
जिंदा थे तो कुछ करम नहीं
अब आकर मेरी कब्र पर
लिख दिया कि अब तो जाने दे

1 comment:

Udan Tashtari said...

कोई अदा जरा उनकी देखे
जिंदा थे तो कुछ करम नहीं
अब आकर मेरी कब्र पर
लिख दिया कि अब तो जाने दे


--बहुत सुन्दर पंक्तियां हैं.