Thursday, October 4, 2007

जाने कैसा सफर होगा

गद्य के मुकाबले पद्य विधा पाठक को अपनी खुद की संवेदना की लहरों में डूबने का अवसर ज्यादा देती है।इसके बावजूद मैंने कुछ शब्दों को समझने के खयाल से उन्हें हल्के तौर पर विस्तार दिया है।अगर आपको कोई असुविधा नहीं है तो केवल नज़्म ही पढे़।अर्थ जो कि ना शब्दार्थ है ना ही भावार्थ ,आपकी कल्पना में बाधा डाल सकता है।
थमी है दरिया की शोखी

सामने आ गया बहर होगा
सामने तूफ़ान हो या खामोश तबाही,किसी भी तरह का परिवर्तन हो उसकी आहट पहले ही लगने लगती है।जैसे दरिया जब समंदर में मिलने के पहले खामोश हो जाती है।
गया है कहाँ कासिद
देखते ही किया हज़र होगा
वो कासिद संदेश लेकर गया तो जरूर है पर उसने देखते ही उससे मुँह मोड़ लिया होगा।
छूटा है साथ उनका
जाने कैसा सफर होगा
रास्ते पर हम ही अकेले बचे हैं,अब क्या पता कैसा सफ़र हो?
शब बुझ गयी शमां
तारीक ही स़हर होगा
शमां ने भी रात को बुझकर संकेत दे दिया था कि अब सुबह भी अँधेरा ही घिरा रहेगा।
हुए नाआशना हमसे
अब और भी क़हर होगा
जब आशना थे तब ही मुसीबत थी अब तो ना जाने कैसा कहर बरपे।
बेबस है कै़स सहरा में
ढूँढो़ कोई शज़र होगा
मज़नू(कै़स) तु तो तलाश में रेगिस्तान की खाक छान रहा है,कोई दरख्त(शज़र) देखकर चैन ले लो।
लगता है तड़प-तड़पकर
अपना तो अब बसर होगा
अब इस मोड़ पर क्या सोचा जाए कि ज़िन्दगी कैसे कटेगी?

पुन:श्‍च--
थमी है दरिया की शोखी
सामने आ गया बहर होगा
गया है कहाँ कासिद
देखते ही किया हज़र होगा
छूटा है साथ उनका
जाने कैसा सफर होगा
शब बुझ गयी शमां
तारीक ही स़हर होगा
हुए नाआशना हमसे
अब और भी क़हर होगा
बेबस है कै़स सहरा में
ढूँढो़ कोई शज़र होगा
लगता है तड़प-तड़पकर
अपना तो अब बसर होगा

2 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

जब इतनी कट गई तो आगे भी कट ही जाएगी. फिक्र क्या?

Udan Tashtari said...

यह तरीका भी बेहतरीन है. सभी को बात समझ आ जायेगी.

एक बार पूरी की पूरी नज्म नीचे इक्कठे फिर से दे दिया करें.

अच्छा लगेगा पढ़ने में.

सुझाव मात्र है, जैसा आप उचित समझें.