Thursday, October 11, 2007

कौन बसा इन आँखों मे

वक्त है सहमा, वस्ल है सहमा
कोई दिखा ना राहों में
दिन भी है डूबा, दिल भी है डूबा
तन्हा सफ़र है ख्वाबों में
ख्वाब सहर का,खवाब सहर तक
कौन बसा इन आँखों में
बात फँसी है,बात जमी है
कैसी है उलझन रातों में
जलती सबा है, चुभती सबा है
कुछ तो फँसा है साँसों में
प्यासी है हसरत,लम्बी है फ़ुरकत
अब तो मिलो बरसातों में


6 comments:

पारुल "पुखराज" said...

sundar....

Divine India said...

यह तो शानदार गीत बन गया…
बहुत खूबसूरती से भाव को प्रस्तुत
किया है…।

Udan Tashtari said...

बेहतरीन गीत!!

प्यासी है हसरत,लम्बी है फ़ुरकत
अब तो मिलो बरसातों में

--शुभकामनायें, जल्द बारिश हो और आपकी मुलाकात. :)

अनूप शुक्ल said...

सही है। लेकिन अब तो बरसात बीत गयी। :)

khushi said...

Nice one!!!

So u doing chemical engineering...huh!
Which year??

Devi Nangrani said...

साहिल साहिल रेती रेती
रिश्तों में और नातों में
दाद के साथ
देवी