Tuesday, October 30, 2007

हँस लो,रो लो,कुछ जी को बहला लो


हँस लो,रो लो,कुछ जी को बहला लो
जब मुख्तसर है शब...तो दिल को जला लो
क़यामत क्या खौफ़ लाएगी अब हस्ती में
सर‌अंजाम है मालूम...कुछ मुस्कुरा लो

यार होता है हमनज़र तो दिल खो जाता है
अब वो गया है आखिर...कुछ दर्द उठा लो
कोई आकर गया है इस वीराने में अभी
निशां गर ना मिले...तो आहट ही चुरा लो

तौबा है मुझको मय से मयकशी से नहीं
चाहो तो सरे-बज़्म...बुलाकर पिला लो
ये मेरी ज़िंदगी भी अजीब सी दास्तां है
कोई हासिल नहीं है फिर भी...हर रंग को पा लो

कभी हँसते हमें भी जहाँ ने देखा था
आकर मेरी पुरानी...तस्वीर का बयां लो
कुछ बात सुन लो मेरी, कुछ मुझे भी सुना लो
कुछ किस्सा आज कह दो...कुछ मेरी भी दुआ लो

2 comments:

Udan Tashtari said...

बेहतरीन, वाह वाह!!

Deepa said...

//क़यामत क्या खौफ़ लाएगी अब हस्ती में
सर‌अंजाम है मालूम...कुछ मुस्कुरा लो
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वाह.. क्या केहना !! ... इन पन्क्तियॊं को हमेशा याद रखने की कॊशिश करूंगी ॥