Monday, August 25, 2008

हम खो गए तुममें (नज़्म)


न देखो भूलकर भी इक नज़र कि शोखी है इनमें
नशा,यह जाने कैसा भर दिया है इनमें खुदा ने

नजाकत से जो तेरे लब लरजते हैं तो ऐ बुतां
निगाहें खो सी जाती है इठलाते हैं पैमाने

निकम्मी हो गयी हैं ये जो तेरी ज़ुल्फें आवारा
नफ़स है बेकरारी की लगी है साँस अब थमने

नसीहत दो तुम शानों को जरा आहिस्ता झटके
नसों में आये जो तूफ़ान तो हस्ती लगे मिटने


निभा जा रिश्ते ये बेनाम हैं मेरे-तुम्हारे
नाजुक सी है इक डोर कब लग जाए सिमटने

नज़ारा रुख का तेरा जो देखा किया मैंने
नूर बरपा है आलम में तू ही है सब में


नश्तर सा तेरा आबे-हुश्न और अपना सोज़े-दिल
नाला है लब पर औ’ दुआ लख्ते-जिगर में

नादान सी ये शोखी और हम भी हैं नादां
नगमा-ए-खुशी गाते हैं शोरे-कयामत में


नीमबाज़ आँखों में तुम बन आते हो तसव्वुर
नहीं बाकी हमारी हस्ती कहीं हम खो गए तुममें


3 comments:

pallavi trivedi said...

हम भी हैं नादांनगमा-ए-खुशी गाते हैं शोरे-कयामत मेंनीमबाज़ आँखों में तुम बन आते हो तसव्वुरनहीं बाकी हमारी हस्ती कहीं हम खो गए तुममें
bahut khoobsurat ehsaas se bhari rachna....

Smart Indian said...

बहुत अच्छा लिका है, शुभकामनाएं!

रश्मि प्रभा... said...

kya bayangi hai husn ki
bahut achha,rup samne lahra gaya........