Wednesday, August 20, 2008

तीन कवितायें

१।

ओ अनजान....
कुछ पल तुझे देखा
और, वो पल गिन लिया मैंने
मेरी यादों की पोटली कुछ और भारी हो गयी
अब रह-रहकर तुझे टटोलूँगा
जब भी सुध खो दूँगा अपनी
तेरी सुध ले लूँगा
और, फिर से वो पल जिंदा हो जायेंगे ..........

२।
वही पुरानी तस्वीर
और तुम देखते हो मुझे
जैसे सदियों से अपलक.....
तुम्हारी आँखें नही थकती?
मैं भी तो जब थक जाता हूँ
तेरी तस्वीर घूरने लगता हूँ
खो जाता हूँ कहीं तेरी तस्वीर में ......

३।
इस चौराहे की मिट्टी अलग सी है
रंग में भी
हमेशा उलट-पुलट
जैसे समय के साथ करवट लेती हो
गर्मियों में धूल बनकर
बारिशों में पोली होकर
सड़क के गड्ढों से झाँकती है
कोई अपनी सी लगती है
आख़िर एक मुद्दत से अपना नाता है...

4 comments:

Udan Tashtari said...

सुन्दर,बधाई.

L.Goswami said...

sundar likha aapne..achchha laga khaskar antim wala.

Smart Indian said...

अति सुंदर, धन्यवाद!

indrajeet said...

bahut smart way me express kiya hai apni imaginantion/feelings ko,
tarika hame bahut pasand aaya,
rachna seedhe aapko hilakar khud ko aapke bahut bheetar tak le jati hai...
maza aa gaya...