Tuesday, August 19, 2008

साँसों की सिलवट

उम्मीद तो कर रहा था,पर इतनी आशा नहीं बँधी थी।जितनी देर तक लिखता रहा बारिश ने साथ दिया,एक ताल में,एक सुरलहरी में,एक लहर में मेरे साथ यह बारिश उतराती गयी और अभी भी उसी ताल में वफा निभाते जा रही है।सचमुच आज ठहर गयी है,कहीं अटक गयी है।कोई अवसाद जमा था शायद.... जो अब घुल रहा है।


बारिश,आसमान का रोना
बिना किसी साँसों की सिलवट के
पर कितना व्यापक क्रंदन
सुन रहा हूँ तेरी आहट
पत्तों पर,छत पर,मेरे भीतर
किससे मिलने की है छटपटाहट
एक शांत सा संगीत
खो रहा मेरा अस्तित्व
इस भिनभिनाहट में
तेरी साँसों तले
साँस
.......बिना सिलवट की साँस

कुछ बातें कर लो
कुछ सुख कहो
कुछ दु:ख बाँटो
यूँ अकेले क्या करते हो
रोते हो या हँसते हो
पता नहीं चलता
कितने युगों की यह प्यास
किस पल की यह तलाश
अभी बाकी तुम्हारी आस
और तुम्हारी साँसें चल रही है
साँस
....बिना सिलवट की साँस

खामोशी पसर गयी है
एक वीराना चीख उठा है
समझ सकता हूँ तुम्हारी बेसदा चीख
कानों में भी बजने लगे हैं जलतरंग
शायद कहीं तुम खिड़कियाँ पीट रहे हो
पर तुम तो शांत थे
खामोशी लुटा रहे थे
अपनी जख्मी साँस सहला रहे थे
साँस
....बिना सिलवट की साँस

कहो तो मैं आऊँ
तुम्हारी पनाह में
भिगो लो मुझे अपने संग में
अपने रंग में,सोयी उमंग में
वो तड़प दिखला मुझे
खोयी सी,सोयी सी
बँधा सा,रोया सा,उजड़ा सा
पलकों में रुठा सा
साँसों सा बैठा सा
एक साँस बुझी बुझी सी
साँस
.....बिना सिलवट की साँस

1 comment:

seema gupta said...

"wa..h, very beautiful poetry"
सांसो की सिलवटें कुछ इस तरह सीकुड गयी,
हम सोचते ही रह गये दुनिया ही बिछुड़ गयी ...
Regards