और फ़िर से वही आहट,फ़िर उसी तरह बहकना-क्या करें जब मन
लगे तभी तो लिखने बैठता हूँ।रात,आधी रात और जागती आँखों में
जागता ख्वाब;दुनिया की सरगर्मी से जलते दिल पर अभी
ओस की ठंढक पड़ी है।उसी नशे की प्रतीक्षा में था
और आँखों के भँवर में वही स्वर गूँजने लगे।
बस और कुछ नहीं तेरी आदत खराब है
हंगामा है सितारों में
मचलता माहताब है
साकी तेरे दर पर
रिन्द का आदाब है
यूँ बेरुखी से होते हो मुकाबिल हमसे
बस और कुछ नहीं तेरी आदत खराब है
ढाते हो कहर इस कदर
आता अज़ाब है
बोलो तेरी अदा का
क्या जवाब है
और उसपे यूँ सिमट के लौट जाना
बस और कुछ नहीं तेरी आदत खराब है
क्यों ना हो सोज़े-दिल
नज़र में आफ़ताब है
है तू इक गज़ल
या पूरी किताब है
मुझको जलाते हो क्यों रफ़्ता-रफ़्ता
बस और कुछ नहीं तेरी आदत खराब है
आए हो किस जहाँ से
क्या कातिल शवाब है
बेचैनी को बढाता
तेरा हिज़ाब है
रुख को छिपाते हो नज़रों से हमारी
बस और कुछ नहीं तेरी आदत खराब है
तु सच में है इक आतिश
या कोई आब है
या मेरी निगाहों में
उतरा सराब है
जो भी है तू पर एक सुनहरा ख्वाब है
बस और कुछ नहीं तेरी आदत खराब है
बस और कुछ नहीं तेरी आदत खराब है
माहताब--चाँद
रिन्द--शराबी
मुकाबिल होना--सामना करना
अजाब--बड़ी विपदा
आफ़ताब--सूरज़
रफ़्ता--धीरे
हिज़ाब--परदा(चेहरे पर पड़ा हुआ)
रुख--चेहरा
आतिश--आग
आब--पानी
सऱाब--मरीचिका
ै
teri aadat kharab ... |
1 comment:
बहुत खूब्……॥
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