
आज कक्षा में २० मिनट का खाली समय मिल गया ,सो कुछ लिखने का मन हुआ ! कुछ ज़्यादा प्रयास नहीं किया है ! फिर भी आशा करता हूँ कि आपको बुरा नहीं लगेगा !
है चार पल की ज़िन्दगी तो
दो पल को तुम ठहर जाते
गम में बदल रही सारी खुशियाँ
दो पल को तुम ठहर जाते
फ़िजा होने लगी है वीरानी
दो पल को तुम ठहर जाते
बना है सहरा फ़िर राज़दां मेरा
दो पल को तुम ठहर जाते
दर्दे-दिल बना है दर्दे-सर
दो पल को तुम ठहर जाते
दर्दे-जहाँ की फ़िर हुई दस्तक़
दो पल को तुम ठहर जाते
भूला जाता हूँ राह में राहरौ
दो पल को तुम ठहर जाते
निकलती है किसी की जाँ हमदम
दो पल को तुम ठहर जाते
ऐ सुबह, न मिटती शबनम
दो पल को तुम ठहर जाते
है चार पल की ज़िन्दगी तो
दो पल को तुम ठहर जाते
गम में बदल रही सारी खुशियाँ
दो पल को तुम ठहर जाते
फ़िजा होने लगी है वीरानी
दो पल को तुम ठहर जाते
बना है सहरा फ़िर राज़दां मेरा
दो पल को तुम ठहर जाते
दर्दे-दिल बना है दर्दे-सर
दो पल को तुम ठहर जाते
दर्दे-जहाँ की फ़िर हुई दस्तक़
दो पल को तुम ठहर जाते
भूला जाता हूँ राह में राहरौ
दो पल को तुम ठहर जाते
निकलती है किसी की जाँ हमदम
दो पल को तुम ठहर जाते
ऐ सुबह, न मिटती शबनम
दो पल को तुम ठहर जाते
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7 comments:
अच्छा है। लिखते रहें।
बहुत बढिया रचना है।
अच्छा प्रयास है आपका...
बस ये पंक्ति थोड़ी दुरुस्त कर लें
फ़िजा होने लगी है वीरानी
दो पल को तुम ठहर जाते .
भाई बुरा मत मानिओ।कविता तो अच्छी है पर ,आप ने चार पल की जिन्दगी कही थी लेकिन दो-दो पल कर के अठारह पल जी लिए और आखिर मे फिर कह रहे हो ठहरने की बात।अब तो जाना पड़ेगा।
मनीष जी आपके संपादन के लिये शुक्रगुज़ार रहूँगा और
dhandhorchee जी पल चुरा हूँ तो हर्ज़ ही क्या है?
अनूप जी और परमजीत जी आपके उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद।
प्रभाकर जी,
आज ही आपका ब्लॉग देखा। जबकि इसपर बहुत कुछ और बहुत उम्दा लिखा जा रहा है। आपका ब्लॉग हिन्द-युग्म से जोड़ रहा हूँ ताकि वहाँ के पाठकों को भी इसकी सूचना मिले।
धन्यवाद।
sahab yeh thaharne ko kise bol rahe ho..nice post though
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